डॉ. जयप्रकाश कर्दम हिन्दी दलित साहित्य के सशक्त सर्जक है। हिन्दी दलित साहित्य के प्रथम पीढी के हस्ताक्षर है। वे दलित वर्ग से जुड़े होने के कारण उनका साहित्य अनुभूति का साहित्य न बनकर स्वानुभूति का साहित्य हैं । उनके साहित्य में दलित जीवन से सम्बन्धित यथार्थ चित्रण मिलता है। उनका साहित्य दलित जीवन की संवेदनशीलता और अनुभवों का यथार्थ हैं। डॉ. जयप्रकाश कर्दम का साहित्य दलितों के जीवन-संघर्ष और उनकी बेचैनी का जीवंत दस्तावेज है। इनके साहित्य में दलित जीवन की विडम्बना, दुःख, पीड़ा, कशक तथा छटपटाहट दिखाई देता है। वे अपने साहित्य के माध्यम से समाज में नवनिर्माण चाहते हैं। उनके के साहित्य की मांग विश्वदृष्टि, जातिभेद का त्याग, उदात्त आदर्श भाव तथा आदर्श जीवन का निर्माण करना है। जो सम्पूर्ण मानव जाति को सत्य के प्रशस्त मार्ग पर अग्रसर करना है।
डॉ. जयप्रकाश कर्दम का जीवन बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय व्यतित हो रहा है। इनका का जन्म १७ फरवरी १९५९ में उत्तरप्रदेश में गाजियाबाद के निकट हापुड़ रोड पर स्थित इन्दरगढी गाँव में एक दलित परिवार में हुआ था, परंतु शैक्षणिक प्रमाणपत्र और सरकारी दस्तावेजों में इनकी जन्मतिथि ५ जलाई १९५८ दर्ज हैं। डॉ. जयप्रकाश कर्दम के परिवार में माता-पिता, भाई-बहन, अपनी पत्नी और पुत्र-पुत्री आदि हैं। उनके के पिता का नाम हरिसिंह है। जब लेखक ११ वीं कक्षा में पढ़ते थे तब सन १९७६ में बिमारी से त्रस्त होने के कारण उनकी असमय मृत्यु हो गयी। डॉ. जयप्रकाश कर्दम की माता का नाम अतरकली हैं। अतरकली को सब रिश्तेदार लोग ‘अतरों’ नाम से पुकारते थे। लेखक से प्राप्त जानकारी के अनुसार आज उनकी मां को उन ८१ वर्ष की है और छोटे भाईयों के साथ गाँव में ही रहती है। कर्दम जी सामान्य परिवार में असामान्य व्यक्तित्व के धनि है। बचपन गाँव इन्दरगढ़ी में ही बीता। बचपन के समय उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी थी, लेकिन उनके दादाजी के मृत्यु के बाद उनके घर की स्थिति बदल गयी । इनके पिताजी टी. बी. के गरीज होने के कारण वे खेत में काम नहीं कर सकते थे। इसलिए एक-एक करके उनके सारे खेत बीक गये। बाद में उन्हें पेट भरने के लिए मुश्किल पड़ गया। बचपन में ही अभाव और संघर्षों का सामना करना पड़ा। इनके पास किताब-कापियाँ तो होती थी, लेकिन स्कूल युनिफॉर्म के अलावा न ढंग के कपड़े होते थे। सन् १९७६ में उनके पिताजी का देहान्त हो गया। घर की सारी जिम्मेदारी बड़ा होने के कारण उनके ऊपर आ गयीं । स्कूल न जाकर दिन में मजदूरी करते थे और रात के समय में घर में पढ़ाई करते थे। उन्होंने इन्टरमीडिएट विज्ञान विषयों के साथ पास किया था, लेकिन कॉलेज की फीस भरने के लिए पैसे न होने के कारण वह बी. एस. सी, में प्रवेश न ले सके। बचपन में जयप्रकाश खूब खेलते-गाते थे। उनकी दादी को ‘आल्हा’और ‘ढोला’सुनने का शौक था। वह पूरी तर्ज के साथ ‘आल्हा’और‘ढोला’गाते थे।
डॉ. जयप्रकाश कर्दम उच्च-शिक्षित सर्जक हैं। उन्होंने कठोर परिश्रम करके शिक्षा के क्षेत्र में कई उपाधियाँ प्राप्त की हैं। आम लेखकों से कई अनोखे शिक्षित है, जिन्होंने शून्य में से सर्जन किया। अपनी नौकरी के बारे में स्वयं लिखते है कि मेरे सरकारी नौकरी की शुरूआत सन् १९८० में बी. ए. की पढ़ाई के दौरान हो गयी थी । सबसे पहले बीक्री कर विभाग में अमीन बना, गाजियाबाद में ही। अब गृहमंत्रालय राजपाषा विभाग के अंतर्गत केन्द्रीय हिन्दी प्रशिक्षण संस्थान नई दिल्ली के निर्देशक के पद से सेवानिवृत्त हुए है और स्वतन्त्र लेखन कर रहे हैं। उनकी की शादी समाचार पत्र में प्रकाशित वैवाहिक विज्ञापन के माध्यम से १६ अक्टूबर, १९८८ में ताराजी के साथ दिल्ली में हुई थी। तारा जी उच्च-शिक्षित है और आज दिल्ली सरकार के माध्यमिक विद्यालय में अध्यापिका का काम करती है। लेखक का सबसे अधिक दिल पढ़ाई-लिखाई में ही लगता है। इनके अलावा खेलों में रूचि रखते है। क्रिकेट सर्वाधिक प्रिय खेल हैं। इनके अलावा टेनिस, बेडमिंटन, होकी, बोक्सिंग आदि खेल को पसंद करते है। संगीत के क्षेत्र में शास्त्रीय संगीत और नृत्य भी पसंद है। सिनेमा जगत में पुरानी फिल्मों के गाने सुनना काफ़ी पसंद करते है, लेकिन सिनेमा के बारे में पढ़ने में बहुत रूचि रखते है। उनके पसंदिदा साहित्यकारों में सामाजिक मुद्दों और सरोकारों पर लिखने वाले प्रत्येक लेखक का अग्रिम स्थान है। डॉ. अम्बेडकर का लेखन लेखक को सर्वाधिक प्रिय लगता है। इसके अलावा ज्योतिबा फूले का लेखन भी पसंद है। इन लेखको के लेखन से लेखक को अपने जीवन में ऊर्जा मिलती है। भारतीय सर्जनात्मक लेखकों में प्रेमचंद का नाम आदर के साथ लिया जाता है और विदेशी लेखकों में मेंक्सीक्म गोर्की का लेखन सर्वाधिक पसंद है। वे पहले स्कूल के दिनों में छोटी-छोटी कविता में तुक-बंदियां करके अपने दोस्तो को सुनाते थे। बाद में कहानी और उपन्यास लेखन की आर इनका ध्यान अग्रसर हुआ।
डॉ. जयप्रकाश कर्दम ने परिवेश के अनुकूल अपने जीवन को दिशा देना का कार्य किया है। उनके व्यक्तित्व के विविध पहलूओं में संपर्षशील, परिश्रमी, कर्तव्यनिष्ठ, प्रेरणादायी, मानवतावादी, मूल्यों के अनुयायी आदि विविध पहलूओं से सम्पन्न एक आदर्श साहित्यकार और व्यक्ति के रूप में दिखाई देते है। उनके के साहित्य सृजन के प्रेरक डॉ. बाबा साहब के विचार, अनुभूति और संवेदना हैं। डॉ. जयप्रकाश कर्दम साहित्य लेखन की शुरूआत सन् १९७६ में करते हैं। आज हिन्दी दलित साहित्य में जयप्रकाश कर्दम का उल्लेखनीय स्थान है। यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं कि डॉ. जयप्रकाश कर्दम के बीना दलित साहित्य की चर्चा अधूरी ही कही जाएगी। उनका साहित्य समाज परिवर्तन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने हिंदी में दलित जीवन को केन्द्र में रखकर काव्य, कहानी, उपन्यास, वैचारिकी, बालसाहित्य, अनुवाद, संपादन आदि का सृजन किया है। उनकी प्रथम पुस्तक ‘वर्तमान दलित आंदोलन’ है। यह पुस्तक सन १९८३ में प्रकाशित हुई थी। हिन्दी दलित उपन्यास साहित्य में डॉ. जयप्रकाश कर्दम का नाम आदर एवं सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्होंने हिन्दी दलित साहित्य को‘छप्पर’करूणा’और ‘श्मशान का रहस्य’ जैसे अमूल्य उपन्यासों की भेट दी। हिन्दी दलित साहित्य के प्रथम उपन्यास बनने का सम्मान ‘छप्पर’ को प्राप्त है। इस उपन्यास में उत्तरप्रदेश राज्य के मातापुर गांव में स्थित एक दलित चमार जाति के परिवार की संघर्ष कहानी को व्यक्त किया है। इसमें दलित जीवन के शैक्षिक आर्थिक राजनीतिक दलित, नारी एवं सामाजिक जीवन के विविध पहलुओं को उजागर किया है।
डॉ.जयप्रकाश कर्दम ने काव्य लेखन का आरंभ छात्र-जीवन से कर दीया था। कवि के ‘गूंगा नहीं था मैं,‘तिनका तिनका आग’ ‘राहुल’ (खंड-काव्य), ‘बस्तियों से बाहर’ काव्य संग्रह प्रकाशित हैं। अपनी कविताओं में समाज में व्याप्त विषमता, जाति-भेद आदि का चित्रण किया है। उपेक्षित दलित वर्ग के दुख-दर्द को काव्य रूप दिया है तथा कविताओं में परिवर्तन की गूंज हैं। बाल साहित्यकार डॉ. जयप्रकाश कर्दम ने बच्चों को प्रेरित, प्रभावित, ज्ञानप्रदत्त एवम् मनोरंजक रचना का सृजन किया हैं। इन रचनाओं में ‘मानवता के फूल’, डॉ. अम्बेडकर की कहानी’ ‘युद्ध की शरणागत नारियाँ’, ‘बुद्ध और उनके शिष्य,‘महान बौद्ध बालक’ ‘आदिवासी देव कथा-लिंगों’ तथा ‘हमारे वैज्ञानिक सी. वी. रामन अमर है।’
अच्छे संपादक के रूप में ‘दलित साहित्य वार्षिकी’ का ईस्वीसन १९९९ से निरंतर कर रहे हैं एवं आचार्य रामचन्द्र शुक्ल साहित्य शोध संस्थान वाराणसी की मासिक शोध-पत्रिका नया-मानदंड’ के ‘दलित चेतना पर अंक’, दलित साहित्य पर केन्द्रित अंक’ तथा ‘दलित आत्मकथाओं पर केन्द्रित अंक’ का अतिथि विशेष संपादन किया था। राजभाषा विभाग द्वारा ‘राजभाषा’ पत्रिका के कुछ अंकों के प्रधान संपादक कार्य भी संभाला था। उनकी आलोचना, समीक्षा और वैचारिक पुस्तक में श्रीलाल शुक्ल कृत राग दरबारी का समाजशास्त्रीय अध्ययन, इक्कीसवी सदी में दलित आंदोलन, साहित्य एवं समाज चिंतन, दलित विमर्श साहित्य की आइने में, जर्मनी में दलित साहित्य: अनुभव और स्मृतियाँ तथा दलित साहित्य का इतिहास भूगोल आदि हैं। डॉ.जयप्रकाश कर्दम ने सृजनात्मक एवं आलोचनात्मक कृतियों के अलावा कई ऐसी किताले लिखी है जो पाठकों के मन को ललूभाती रही हैं। ऐसी किताबों में वर्तमान दलित आंदोलन बौद्ध धर्म के आधार स्तंभ, अम्बेडकरवादी आंदोलन दशा और दिशा, अम्बेडकर और उनका समकालीन, हिन्दुत्व और दलित कुछ प्रश्न कुछ विचार, डॉ. अम्बेडकर, दलित और बौद्ध धर्म प्रमुख है।
डॉ. जयप्रकाश कर्दम का साहित्य लेखन तीव्र और अबाधित गति से हो रहा है। इनकी कुछ ही समय में प्रकाशित होनेवाली रचनाओं में एक कहानी संग्रह ‘खरोच’ और एक वैचारिक पुस्तक ‘दलित स्त्री के हक में’ हैं। इनके विशेष कार्य में राष्ट्रीय और आंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयोजित संमेलन-संगोष्ठियों में भागीदारी, व्याख्याता एवं शोधपत्रों का वाचन दिया है। इनकी साहित्य साधना हिन्दी भाषिक सीमाओं को लांध कर पार हो चुकी हैं। इनकी साहित्यिक रचनाएँ इतनी जानदार है कि देश-विदेश की कई भाषाओं में अनुदित हुई हैं। छप्पर उपन्यास मराठी, गुजराती, तेलुगु, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मनी, इतालवी, जापानी और रूसो सहित अनेक देशी-विदेशी भाषाओं में अनुदिन और प्रकाशित हैं। कर्दम जी को साहित्यिक, सास्कृतिक एवं सामाजिक संस्थानों द्वारा निम्नलिखित सम्मान एवं पुरस्कार प्राज है- संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा साहित्यकार फैलोशीप, भारतीय बौद्ध महासभा, उत्तर प्रदेश द्वारा बौद्ध साहित्य लेखन के लिए फैलोशीप, मध्यप्रदेश दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘छप्पर’ उपन्यास के लिए ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’, अस्मितादर्शी साहित्य अकादनी, उज्जैन द्वारा ‘साहित्य सारस्वत सन्मान’, भारतीय दलित साहित्य अकादमी, दिल्ली द्वारा ‘डॉ. अम्बेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार’, सत्यशोधक समाज महाराष्ट द्वारा ‘ज्योतिबा फुले सम्मान’। भारतीय दलित साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश द्वारा ‘संत कबीर’ राष्ट्रीय सन्मान। उत्तर प्रदेश दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘रविदास सम्मान’। विश्व हिन्दी सचिवालय, मारीशस द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी विषय पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय ‘निबंध प्रतियोगिता’ में ‘द्वितीय पुरस्कार’। डॉ. जयप्रकाश कर्दम को गौरवान्वित करनेवाली उपलब्धियाँ यह है कि-सन् १९९५ में राष्ट्रीय हिन्दी अकादमी, रूपाम्बरा द्वारा काठमांडु नेपाला में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय साहित्य सम्मेलन में भागीदारी, सन् २००१ में चण्डीगढ़ में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय दलित साहित्यकार संमेलन की अध्यक्षता, सन् २००५ में आयोजित सार्क देशों के साहित्यकार संमेलन (एक आकाश-अनेक संसार) में कथाकार के रूप में भारत का प्रतिनिधित्व, सन २००६ के जर्मनी में आयोजित विश्व पुस्तक मेला के अवसर पर ईन्टरनेशनल दलित सोलिडेरिटो नेटवर्क के निमंत्रण पर जर्मनी की साहित्यिक यात्रा आदि।
डॉ. जयप्रकाश कर्दम हिन्दी दलित साहित्य का कभी न अस्त होने वाला सितारा हैं। जिन्होंने साहित्य के जरिए पूरे दलित समाज के नभमंडल को प्रकाशित किया है। इनका जीवन सरल, सहज, सेवाभावी, मिलनसार और कठोर परिश्रमी व्यक्तित्व के धनी हैं। उनके साहित्यकार बनने के पीछे उनकी स्वयं की आत्मप्रेरणा ही जिम्मेदार है । यह इस बात का प्रमाण हैं कि वे एक सच्चे अर्थ में समाज सेवी है। जिन्हें साहित्य का शस्त्र उठाया। साहित्य की गद्य और पद्य दोनों विद्या में उनकी लेखनी चली है। इन साहित्य सृजन के लिए कई सम्मान एवं पुरस्कार मिले है। जो इनकी बहुमुखी प्रतिभा को सम्मानित करता है।
डॉ. के. के. भवा
करार आधारित व्याख्याता सहायक
हिंदी विभाग, राजकीय कला-महाविद्यालय,
जाम-कल्याणपुर, देवभूमि द्वारिका,
गुजरात-३६१३२०